Atma-Bodha Lesson # 37 :
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आत्म-बोध के 37th श्लोक में भी आचार्यश्री हमें आत्म-अभ्यास क्या है और इससे क्या होता है वो बताते हैं। आत्मा के वास्तविक स्वरुप का पूरे प्रमाण पूर्वक अर्थात शास्त्रोक्त ज्ञान उत्पन्न करके, अपने जीव-भाव को कल्पित जानकर पूर्णतः बाधित करके, अपनी वास्तविकता की पहले तो अपरोक्ष स्पष्टता उत्पन्न करके - उसी में जगे रहना और रमना चाहिए। ये ही अहम्-ब्रह्मास्मि की वृत्ति है - अर्थात हम ही ब्रह्म है। इस निश्चय को सतत अभ्यास के द्वारा हृदयांवित करना चाहिए। अर्थात - ये सहज और अत्यंत प्रिय हो जाये। जब ऐसा हो जाता है, तब अविद्या और ताड-जनित विक्षेप जड़ से ऐसे समाप्त हो जाते हैं, जैसे दवाई से रोग।
इस पाठ के प्रश्न :
१. आत्म-अभ्यास किसे कहते हैं?
२. आत्म-अभ्यास में क्या करना होता है?
३. आत्म-अभ्यास का परिणाम क्या होता है?
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