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Sir Chupane Ki Jagah | Rajesh Joshi

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सिर छिपाने की जगह | राजेश जोशी

न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई

अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग

उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे

मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया

कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं ।

हाँ...पहचानोगे भी कैसे

बहुत बरस हो गए मिले हुए

तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी उम्र ने काफ़ी बदल दिया है

लेकिन हमें देखो हम तो आज भी बिलकुल वैसे ही हैं

हमारे रंग ज़रूर कुछ फीके पड़ गए हैं

लेकिन क्या तुम सचमुच इन रंगों को नहीं पहचान सकते

क्या तुम अपने बचपन के सारे रंगों को भूल चुके हो

भूल चुके हो अपने हाथों से खींची गई सारी रेखाओं को

तुम्हारी स्मृति में क्या हम कहीं नहीं हैं?

याद करो यह उन दिनों की बात है जब तुम स्कूल में पढ़ते थे

आठवीं क्लास में तुमने अपनी ड्राइंग कॉपी में एक तस्वीर बनाई थी

और उसमें तिरछी और तीखी बौछारोंवाली बारिश थी

जिसमें कुछ लोग भीगते हुए भाग रहे थे

वह बारिश अचानक ही आ गई थी शायद तुम्हारे चित्र में

चित्र पूरा करने की हड़बड़ी में तुम सिर छिपाने की जगहें बनाना भूल गए थे

हम तब से ही भीग रहे थे और तुम्हारा पता तलाश कर रहे थे

बड़े शहरों की बनावट अब लगभग ऐसी ही हो गई है

जिनमें सड़कें हैं या दुकानें ही दुकानें हैं

लेकिन दूर-दूर तक उनमें कहीं सिर छिपाने की जगह नहीं

शक करने की आदत इतनी बढ़ चुकी है कि तुम्हें भीगता हुआ देखकर भी

कोई अपने ओसारे से सिर निकालकर आवाज़ नहीं देता

कि आओ यहाँ सिर छिपा लो और बारिश रुकने तक इन्तज़ार कर लो

घने पेड़ भी दूर-दूर तक नहीं कि कोई कुछ देर ही सही

उनके नीचे खड़े होकर बचने का भरम पाल सके

इन शहरों के वास्तुशिल्पियों ने सोचा ही नहीं होगा कभी

कि कुछ पैदल चलते लोग भी इन रास्तों से गुज़रेंगे

एक पल को भी उन्हें नहीं आया होगा ख़याल

कि बरसात के अचानक आ जाने पर कहीं सिर भी छिपाना होगा उन्हें

सबको पता है कि बरसात कई बार अचानक ही आ जाती है

सबके साथ कभी न कभी हो चुका होता है ऐसा वाकया

लेकिन इसके बाद भी हम हमेशा छाता लेकर तो नहीं निकलते

फिर अचानक उनमें से किसी ने पूछा

कि तुम्हारे चित्र में होती बारिश क्या कभी रुकती नहीं

तुम्हारे चित्र की बारिश में भीगे लोगों को तो

तुम्हारे ही चित्र में ढूँढ़नी होगी कहीं

सिर छिपाने की जगह

उन्होंने कहा कि हम बहुत भीग चुके हैं जल्दी करो और बताओ

कि क्या तुमने ऐसा कोई चित्र बनाया है...

जिसमें कहीं सिर छिपाने की जगह भी हो?

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अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग

उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे

मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया

कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं ।

हाँ...पहचानोगे भी कैसे

बहुत बरस हो गए मिले हुए

तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी उम्र ने काफ़ी बदल दिया है

लेकिन हमें देखो हम तो आज भी बिलकुल वैसे ही हैं

हमारे रंग ज़रूर कुछ फीके पड़ गए हैं

लेकिन क्या तुम सचमुच इन रंगों को नहीं पहचान सकते

क्या तुम अपने बचपन के सारे रंगों को भूल चुके हो

भूल चुके हो अपने हाथों से खींची गई सारी रेखाओं को

तुम्हारी स्मृति में क्या हम कहीं नहीं हैं?

याद करो यह उन दिनों की बात है जब तुम स्कूल में पढ़ते थे

आठवीं क्लास में तुमने अपनी ड्राइंग कॉपी में एक तस्वीर बनाई थी

और उसमें तिरछी और तीखी बौछारोंवाली बारिश थी

जिसमें कुछ लोग भीगते हुए भाग रहे थे

वह बारिश अचानक ही आ गई थी शायद तुम्हारे चित्र में

चित्र पूरा करने की हड़बड़ी में तुम सिर छिपाने की जगहें बनाना भूल गए थे

हम तब से ही भीग रहे थे और तुम्हारा पता तलाश कर रहे थे

बड़े शहरों की बनावट अब लगभग ऐसी ही हो गई है

जिनमें सड़कें हैं या दुकानें ही दुकानें हैं

लेकिन दूर-दूर तक उनमें कहीं सिर छिपाने की जगह नहीं

शक करने की आदत इतनी बढ़ चुकी है कि तुम्हें भीगता हुआ देखकर भी

कोई अपने ओसारे से सिर निकालकर आवाज़ नहीं देता

कि आओ यहाँ सिर छिपा लो और बारिश रुकने तक इन्तज़ार कर लो

घने पेड़ भी दूर-दूर तक नहीं कि कोई कुछ देर ही सही

उनके नीचे खड़े होकर बचने का भरम पाल सके

इन शहरों के वास्तुशिल्पियों ने सोचा ही नहीं होगा कभी

कि कुछ पैदल चलते लोग भी इन रास्तों से गुज़रेंगे

एक पल को भी उन्हें नहीं आया होगा ख़याल

कि बरसात के अचानक आ जाने पर कहीं सिर भी छिपाना होगा उन्हें

सबको पता है कि बरसात कई बार अचानक ही आ जाती है

सबके साथ कभी न कभी हो चुका होता है ऐसा वाकया

लेकिन इसके बाद भी हम हमेशा छाता लेकर तो नहीं निकलते

फिर अचानक उनमें से किसी ने पूछा

कि तुम्हारे चित्र में होती बारिश क्या कभी रुकती नहीं

तुम्हारे चित्र की बारिश में भीगे लोगों को तो

तुम्हारे ही चित्र में ढूँढ़नी होगी कहीं

सिर छिपाने की जगह

उन्होंने कहा कि हम बहुत भीग चुके हैं जल्दी करो और बताओ

कि क्या तुमने ऐसा कोई चित्र बनाया है...

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